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पूंजीपतियों के हित में है भूमि अधिग्रहण कानून

भावों से शब्दों तक
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केंद्रीय राजनीति में सत्ता पर काबिज़ हुए भाजपा नीत राजग को महज 8 माह के आस पास का समय ही बीता है। महज इतना कम वक्त गुजरने के बावजूद भी भाजपा ने जनता से सरोकार रखने वाले कई नए बिलों को सदन में पारित करा कर कानून की शक्ल दी है तो वहीं कई पुराने कानूनों को पलट कर नए सिरे से अपने हिसाब से गढ़ा भी है। इसी कड़ी में जो सबसे नया कानून भाजपा के मौजूदा शासन काल में लाया गया है वह भूमि अधिग्रहण कानून है। गौरतलब है कि साल 2013 के अंतिम माह में संप्रग-2 सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण कानून को दोनों सदनों में पारित कराया गया था। तत्कालीन भूमि अधिग्रहण कानून में संप्रग-2 सरकार द्वारा ऐसे कई प्रावधान डाले गए थे जिसके बाद से भूमि अधिग्रहण कानून भू- स्वामियों, किसानों आदि के हित में मालूम पड़ रहा था। वह बिल कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी व राहुल गांधी के मनमुताबित कुछ इस तरह से तैयार किया गया था जिससे देश विदेश के पूंजीपतियों के मुकाबले अधिक फायदा गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहे किसानों को हो तथा कारोबारियों को किसानों की भूमि हथियाने में कई महत्वपूर्णं पड़ाव से गुज़रना पड़े।
भारतीय जनता पार्टी ने सत्ता में आने के कुछ माह भीतर ही बीते दिनों संप्रग-2 सरकार वक्त में पारित हुए भूमि अधिग्रहण कानून में कई अहम् व महत्वपूर्णं बदलाव करके हाशिये पर पडे गरीब किसानों के साथ साथ उस तबके की जनता को भी आश्चर्यचकित कर दिया जो प्रधानमंत्री मोदी से उम्मीदें लगाये बैठा था। पुराने कानून में कई संसोधन करा कर भाजपा ने कानून अध्यादेश के जरिये से पारित करा कर राष्ट्रपति की मंजूरी भी दिला दिया दी है। हाल ही में बनाए गए नए भूमि- अधिग्रहण कानून में कई बदलाव किए गए हैं। अगर हम मौजूदा कानून की तुलना संप्रग सरकार के वक्त पारित हुए कानून से करें तो मोटा मोटा बदलाव पाएंगे कि जहां पुराने कानून में जमीन का अधिग्रहण करने के लिए सौ फीसदी किसानों में से अमूमन 50 से 80 फीसदी तक की सहमति अनिवार्य थी तो वहीं नए कानून के हिसाब से सरकार ने किसानों की सहमति की इस व्यवस्था प्रणाली को पूर्णतःखत्म कर दिया है। किसानों की सहमति के मसले पर सरकार व विपक्ष के अपने अपने सवाल जवाब हैं, जिसमें कुछेक वाजि़ब तथा अन्य पूंजीपतियों को खुश करने के संदर्भ में उठाये गए कदम की तरह मालूम देते हैं।
मोदी सरकार के मंत्रियों व नेताओं का मानना है कि भारत को विकासशील देश बनाने के लिए पिछले कानून में अहम् परिवर्तन करना अत्याधिक आवश्यक था। भाजपाई नेताओं के अनुसार वर्तमान कानून विदेशी कारोबारियों व पूंजीपरितयों को भारत में अपने व्यापार को और बढ़ाने में मददगार साबित होगा। इसी कारणवष काॅरपोरेट घराने, देश में बिना किसी व्यवधान के किसानों की जमीन का उचित मूल्यों पर अधिग्रहण कर सकेंगें, जिससे देश अन्य देशों की तरह प्रगतिशील हो सकेगा। सवाल जवाब के इस दौर में एक बात समझने वाली है कि बीते संप्रग-2 सरकार के भूमि अधिग्रहण कानून का विरोध कई राज्यों में सत्ता की कुर्सी पर बैठे उन्ही के मुख्यमंत्रियों ने भी किया था। उस कानून को विकास की गति में बाधक तक बतलाया था। जबकि उस वक्त विरोध करने वाले समय बीतते ही वर्तमान कानून के भी मुखालफत में खड़े हो चुके हैं। खैर, समर्थन व विरोध को महज सभी राजनैतिक दलों की मजबूरी के रूप में ही देखा जाना चाहिए। लेकिन अगर इसके इतर वर्तमान कानून के बारे में कुछ अन्य सकारात्मक पहलुओं पर नज़र डालें तो भूमि अधिग्रहण कानून में किसान की बहुफसली जमीन को अधिग्रहण कानून के दायरे से इतर रखा गया है। इसके साथ ही साथ मोदी सरकार ने मुआवजे के तौर संप्रग-2 सरकार वाले कानून में किसी भी तरह का संसोधन नहीं किया है,जिसमें मुआवजे की राशि को 1894 के भूमि अधिग्रहण कानून की तुलना में चार गुना बढ़ाया गया था।
खैर, मौजूदा भूमि अधिग्रहण कानून के बारे में बात करते वक्त इस बात पर भी गौर करने की जरूरत है कि 2014 आम चुनावों के तैयारियों के दौरान भाजपा की ओर से प्रचार प्रसार की कमान संभालने वाले तत्कालीन प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार व वर्तमान समय में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा स्वयं को पिछड़े तबके का बताते हुए किसानों, पिछड़े वर्ग के लिए एक तरह से मसीहा बताते थे। पिछड़े तबके से अनके की वजह से मतदाताओं को उनसे कई उम्मीदे भी लगने लगी थी। लेकिन सत्ता में आते ही मोदी सरकार ने मौजूदा भूमि अधिग्रहण कानून के जरिए से किसानों की जमीन पर उनकी सहमति के अधिकार को पूरी तरह छीन लिया है,जिससे प्रचार करते वक्त उनके द्वारा कही जाने वाली सभी बातों पर सवालिया निशान तो लगे ही हैं साथ ही साथ विपक्ष के उस आरोप में भी दम दिखाई पड़ता है जिसमे विपक्षी हमेशा नरेन्द्र मोदी को पूंजीपतियों का अत्यधिक सहयोग करने के आरोप लगा चुके हैं।

मदन तिवारी
स्वतंत्र टिप्पणीकार
लखनऊ

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