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हाशिये पर उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था

भावों से शब्दों तक
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उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को सत्ता पर काबिज़ हुए लगभग ढाई साल होने वाले हैं .. ढाई साल पहले 2012 में हुए विधान सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी मुखिया मुलायम सिंह यादव और उनके सुपुत्र अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने के लिए जनता से कई वादें किये जैसे सत्ता पर काबिज़ होने के बाद बाहरवीं पास छात्रों को लैपटॉप, दसवी पास छात्रों को टैब, कन्याविद्याधन, बेहतर कानून व्यवस्था आदि ..इन सभी वादों में एक बात सबसे अधिक गौर करने वाली थी तो वह सपा सरकार के सत्ता पर आने के बाद जनता को बेहतर कानून व्यवस्था प्रदान करने वाला वादा था .. प्रदेश की जनता पिछली बसपा सरकार की भ्रष्ट एवं लचर महकमे से जहा दुखी थी तो वहीँ एक नयी सरकार को सत्ता सौंपने को लेकर अत्यधिक उत्साहित भी थी, जिसके फलस्वरूप प्रदेश की जनता ने सपा को भारी बहुमत देकर प्रदेश की जिम्मेदारी विदेश से पढ़ कर आये युवा चेहरे अखिलेश यादव के हाथों में सौंप दी .. प्रदेश में सपा सरकार के आते ही जैसे गुंडा राज खुद ब खुद हावी होने लगा जिसकी शुरुआत 8 मार्च 2012 को विधानसभा नतीजों के आने के बाद शुरू हुई .. आश्चर्यजनक जीत से उत्साहित सपा कार्यकर्ताओं के द्वारा कई मीडिया कर्मचारियों को बंधक बनाने व् उनके ऊपर हमला करने की घटना सामने आने लगी .. समय बीतने के साथ तो प्रदेश की कानून व्यवस्था और ख़राब होती गयी जिससे प्रदेश में सैकड़ों दंगे हुए तो बरेली, मुज्ज़फरनगर समेत कई शहरों में कई दिनों तक लगे कर्फ्यू से सपा सरकार के द्वारा की गयी बेहतर कानून व्यवस्था वाले वादें की पोल खुलती गयी . पिछले दो वर्षों में कमोबेश उत्तर प्रदेश के चारों कोने सांप्रदायिक दंगो के आग की भेंट चढ़ते गए हैं . फिर चाहे वह हाल ही में हुए मुरादाबाद के दंगे हों या गोरखपुर के दंगे . मुज्ज़फरनगर, सहारनपुर, बरेली जिलों में हुए सांप्रदायिक दंगों ने प्रदेश सरकार की कथनी और करनी को लोगो के समक्ष ला खड़ा किया है .. इसके आलावा हाल ही में हुए बदायूं में दो बहनों के साथ बलात्कार के बाद पेड़ पर लटकाए जाने एवं लखनऊ के मोहनलालगंज इलाके के ‘निर्भया’ बलात्कार काण्ड में प्रदेश पुलिस की बेबुनियाद छानबीन एवं जांच पड़ताल से प्रदेश पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान उठने लगे हैं .. पुलिस के द्वारा निर्भया की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से की गयी छेड़ छाड़ की वजह से जनता का प्रदेश सरकार और उसकी कानून व्यवस्था पर से भी लगातार भरोसा उठने लगा है है और दो साल से ज्यादा बीतने के साथ ही सपा सरकार की नाकामी साफ़ दिखाई पड़ने लगी है ..

प्रदेश के मुखिया अखिलेश यादव लगातार अपनी नाकामी को छुपाते हुए सपा कार्यकाल में हुए दंगों की वजह अन्य राजनीतिक दलों को बताते रहे है परन्तु प्रदेश के मुखिया अखिलेश यादव चाहे इस तरह के जितने भी तर्क दे दें, यह सभी तर्क जनता के गले उतरता हुआ नहीं प्रतीत हो रहा है .आज से लगभग ढाई दशक पहले लोहिया के समाजवाद को अपना कर मुलायम सिंह यादव ने अपनी राजनीतिक जमीन की नीव रखी थी.. राम मनोहर लोहिया को अपना आदर्श मानने वाली तथा उन्ही के नक़्शे क़दमों पर चलने की बात कहने वाली सपा सरकार के हालिया क्रिया कलापों को देखते हुए किसी भी तरह से यह लोहिया का समाजवाद दिखाई नहीं पड़ता है..

खैर, अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में अखिलेश यादव क्या प्रदेश की कानून व्यवस्था दुरुस्त करने में कितने सक्षम हो पाते हैं और अगर हाँ तो कब तक क्योंकि कमोबेश पिछले कुछ महीनों में विपक्षी राजनीतिक दलों की ओर से लगातार प्रदेश सरकार को बर्खास्त कर उत्तर प्रदेश में हाशिये पर पड़ी कानून व्यवस्था को प्रदेश में राज्यपाल शासन लगा कर दुरुस्त करने की मांग होती आई है.. इतना ही नहीं दो माह पूर्व हुए लोकसभा चुनावों में भी जनता ने सपा सरकार को 80 में से महज 4 सीटें देकर चेता दिया था कि अगर आने वाले कुछ ही वक़्त में अखिलेश यादव व् सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव जल्द ही प्रदेश की चरमराई कानून व्यवस्था को दुरुस्त करने में कोई कड़े कदम नहीं उठाते हैं तो 2017 में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी सपा को 2014 लोकसभा चुनावों जैसा हाल झेलना पड सकता है..

मदन तिवारी

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